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लख्नऊ का कलामी-फ़िक़्ही स्कूल; भारत में शिया प्रचार केंद्र

16:16 - June 09, 2019
समाचार आईडी: 3473667
अंतर्राष्ट्रीय समूह- लख्नऊ का कलामी-फ़िक़्ही स्कूल सुल्तानुल-मदारिस, को कुछ कारण से बहुत कठिन समय व तक़य्यह के बाद शिया धर्म को औपचारिक रूप देने वाला शिया केंद्र और भारत के अन्य समान स्कूलों से अलग माना जा सकता है।

भारत से IQNA की रिपोर्ट के अनुसार, शिया विद्वानों ने पूर्व से पश्चिम तक इस्लाम के इतिहास में प्रमुख उपस्थित रखी है और विभिन्न विज्ञानों को आगे बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। कुछ ऐतिहासिक काल में, शिया विद्वानों ने एक साथ मिलकर एक बड़े स्कूल का निर्माण किया जो इस्लामी विज्ञान में क्रांति का सबब बना है।
इस संदर्भ में कुफा, क़ुम, बग़दाद, रे, हिल्ला, शिराज़, इस्फ़हान और नजफ़ जैसे स्कूल की इशारा किया जा सकता है उत्तर प्रदेश की प्रांतीय राजधानी लख्नऊ का कलामी-फ़िक़्ही स्कूल सुल्तानुल-मदारिस भी इनमें से है जो दो सदियों से बहुत से काम किए हैं और बहुत छात्रों को इस स्कूल में प्रशिक्षित किया गया है।
कुछ विशेषताओं के होने के कारण इस विद्यालय को अन्य विद्यालयों से अधिक विशिष्ट बना दिया है, कि घोर तनाव और तक़य्यह के बाद शिया धर्म को औपचारिक रूप से मान्यता देने वाला है।
इसी तरह सूफीवाद के कारण शिया संप्रदायवादी होने के बाद इस स्कूल ने एक आधिकारिक वैज्ञानिक संस्थान भी स्थापित किया, और बग़दाद, हिल्ला (इराक के शहरों और बाबुल प्रांत की राजधानी) और इस्फ़हान से भारत में शिया इल्मी माराष को स्थानांतरित करने की कोशिश की।
चरमपंथी और सलाफिस्ट विचारों के मालिकों के हमलों के खिलाफ तुलनात्मक और आलोचनात्मक अध्ययन करना शिया मान्यताओं में होगया और कलामी विचारों में व्यापक शोध और शिया तर्कपूर्ण शब्दों में महान कार्यों का निर्माण जैसे कि भारत के उलेमाओं में से ऐक दिवंगत आलिम अल्लामह सय्यद दिल्दार अली ग़फ़रान माब की किताब इमादुल -इस्लाम जो 20 खंडों में है इस विद्यालय की अन्य गतिविधियों में से देखा जा सकता है।
इसी तरह लख्नऊ का कलामी-फ़िक़्ही स्कूल कलामी विषयों में इज्तिहादी पद्धति का उपयोग करके न्यायशास्त्रीय स्कूल कलामी अनुसंधान में तर्कसंगत और पारमार्थिक पद्धति को प्रस्तुत करता है जिसे अन्य स्कूलों की तुलना में इस स्कूल की विशिष्ट विशेषताओं के रूप में देखा जा सकता है।
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